Sunday, July 23, 2023

जीवन रचती फिल्म ‘द अनबियरेबल लाइटनेस ऑफ बीइंग’


द अनबियरेबल लाइटनेस ऑफ बीइंग मिलान कुंदेरा (1923-2023) की सबसे चर्चित कृति रही है. पिछले हफ्ते पेरिस में हुई उनकी मृत्यु की खबर दुनिया भर में सुर्खियों में रही. उनके साहित्य पर टीका-टिप्पणी हुई लेकिन इस बहुचर्चित उपन्यास पर इसी नाम से बनी फिल्म की चर्चा उपेक्षित रही.

वर्ष 1984 में द अनबियरेबल लाइटनेस ऑफ बीइंग प्रकाशित होने के दो साल बाद ही फिल्म बननी शुरू हुई और वर्ष 1988 में अमेरिकी फिल्मकार फिलिप कॉफमैन के निर्देशन में रिलीज हुई थी. निस्संदेह कुंदेरा का यह उपन्यास पिछली सदी के विश्व साहित्य का गौरव है. यह उपन्यास दर्शन, इतिहास, राजनीति, मानवीय संबंधों, द्वंदो, कमजोरियों को 1968 में प्राग स्प्रिंग (चेकोस्लोवाकिया) की पृष्ठभूमि में रचता है. अधिनायकवादी सत्ता के दुरुपयोग को जिस शिल्प में सहजता से कुंदेरा इस उपन्यास के पाठकों को परोसते हैं वह अदभुत है. अंग्रेजी अनुवाद में इसे पढ़ने पर मन में हमेशा यह बोध बना रहा कि मूल चेक में पढ़ने पर इसका आस्वाद कैसा होगा?  उल्लेखनीय है कि अपने देश चेक गणराज्य से निर्वासित होकर वे वर्ष 1975 से फ्रांस में रह रहे थे. बाद में उन्होंने फ्रेंच में भी लिखना शुरु कर दिया था.

बहरहाल, उपन्यास के मुख्य चरित्र टॉमास, तेरेजा, सबीना, फ्रांज और एक कुत्ता हैं. खुद उपन्यासकार इस उपन्यास में मौजूद है और बार-बार पाठकों से रू-ब-रू होता रहता है. इस बहुस्तरीय किताब के कई अंश को फिल्म निर्देशक ने नहीं छुआ है. मसलन फिल्म में उपन्यासकार नहीं दिखता है. फिर भी उपन्यास के मूल कथ्य स्क्रीनप्ले में सुरक्षित रखा गया है.

उपन्यास से अलग एक यह फिल्म एक स्वतंत्र विधा के रूप में हमें प्रभावित करती है. कई दृश्य, किरदारों के अभिनय और संगीत जेहन में टंगे रह जाते हैं.

टॉमास जो कि एक कुशल सर्जन है, प्राग में रहता है. उसके कई स्त्रियों से संबंध है. एक मुलाकात के दौरान वह तेरेजा के संपर्क में आता है फिर दोनों शादी कर लेते हैं. हालांकि फिर भी टॉमास के संबंध अन्य स्त्रियों से जारी रहते हैं. सबीना एक ऐसी स्वतंत्रचेता पेंटर है जिसके साथ भी टॉमास के सेक्स संबंध हैं. सबीना की सहायता से तेरेजा की नौकरी एक फोटोग्राफर के रूप में लग जाती है. बाद में वर्ष 1968 में जब साम्यवादी सोवियत संघ की सेना टैंकों के साथ प्राग पर धावा बोलती है तब हम उसी के कैमरे की आँखों से लोमहर्षक दृश्य देखते हैं. फिल्मकार ने दस्तावेजी फुटेज के साथ बेहद खूबसूरती से टैंको के ईद-गिर्द लोगों के विरोध प्रदर्शन को चित्रित किया है. प्राग के निवासी अपने घर-बार छोड़ कर दूसरे देशों में रिफ्यूजी बनने को मजबूर हैं. फिल्म में आए घर, मानवीय अस्तित्व, स्वतंत्रता का सवाल मौजू है.

वर्तमान में जब एक बार फिर से रूसी सेना यूक्रेन में है, द अनबियरेबल लाइटनेस ऑफ बीइंग फिल्म प्रासंगिक है.

उपन्यास की तरह ही फिल्म में टॉमास, तेरेजा, सबीना देश छोड़ कर स्विट्जरलैंड चले जाते हैं. यहाँ पर सबीना की मुलाकात प्रोफेसर और बुद्धिजीवी फ्रांज से होती है. तेरेजा स्विट्जरलैंड को स्वीकार नहीं कर पाती है और प्राग लौट आती है. टॉमास को एहसास होता है कि वह तेरेजा के बिना नहीं रह सकता है और फिर पीछे-पीछे प्राग लौट आता है. लेकिन उसके संबंध अन्य स्त्रियों के साथ जारी रहते हैं. टॉमास (डेनियल डे लिविस) और तेरेजा (जूलियेट बिनोचे) के बीच संबंधों के तनाव को बेहद खूबसूरती से फिल्म सामने लाती है.

 

सोवियत सेना के वर्चस्व के बाद लेखकों, बुद्धिजीवियों, राजनयिकों, पेशवर डॉक्टरों को नौकरी गंवानी पड़ी थी. टॉमास को भी खिड़कियों के साफ-सफाई का काम करना पड़ता है. तेरेजा और टॉमास शहर छोड़ कर गाँव का रूख करते हैं. उधर सबीना फ्रांज को छोड़ कर अमेरिका चली जाती है. अंत में, सबीना को, उपन्यास के तरह ही, एक पत्र के माध्यम से एक वाहन दुर्घटना में तेरेजा और टॉमास के मौत की खबर मिलती है. फिल्म का आखिरी दृश्य उस वाहन में टॉमास और तेरेजा की हंसी और बारिश के दृश्य के साथ रास्ते पर खत्म होती है.

मिलान कुंदेरा हालांकि इस फिल्म से खुश नहीं थे. वे अपवाद नहीं हैं. आम तौर पर साहित्यिक कृतियों पर बनने वाली फिल्मों से उसके रचनाकार खुश नहीं रहते हैं. पर यदि हम ग्रैबिएल गार्सिया मार्केज़ या सलमान रुश्दी के उपन्यासों पर बनी फिल्मों से इस फिल्म की तुलना करें तो निस्संदेह यह फिल्म उपन्यास की देह और आत्मा को परदे पर साकार करने में सफल रही है.   फिल्म और उपन्यास का फलसफा एक है: हम जीवन एक ही बार जीते हैं, जिसकी तुलना न हम पिछले जीवन से कर सकते हैं न ही इसे आने वाले जीवन में बेहतर बना सकते हैं’. 

No comments: