इस साल जनवरी के मध्य से इजराइल और फिलिस्तीन के बीच युद्ध विराम जारी है, पर संघर्ष खत्म होने के आसार आसानी से नजर नहीं आ रहे हैं. 7 अक्टूबर 2023 की हमास की चरमपंथी घटना में करीब 1200 इजराइली मारे गए और 251 लोगों को बंधक बना लिया गया था. युद्धविराम के तहत हमास बंधकों को टुकड़ो मे रिहा करेगा ताकि युद्ध समाप्ति की ओर बढ़ा जा सके. युद्ध में कम से 48 हजार फिलिस्तीनी हताहत हुए हैं और लाखों बेघर.
इजराइल और फिलिस्तीन समस्या के जड़ें काफी गहरी है जो पिछली सदी में वर्ष 1948 में अरब-इजरायल युद्ध के साथ एक नया मोड़ ले लिया. इस युद्ध (नक्बा) में सात लाख पचास हजार फिलिस्तीनी शरणार्थी बना दिए गए.
मौजूदा इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष के परिप्रेक्ष्य में ‘फिलिस्तीन: जो गायब भी है हाजिर भी’ पढ़ना रोचक है. हिंदी में अंतरराष्ट्रीय मसलों पर किताबों का सर्वथा अभाव रहा है. अजीजुर रहमान आजमी की यह किताब इस कमी को पूरा करती है. इस किताब में तथ्यों के आधार पर सवाल उठाया गया है कि इजरायल-फिलिस्तीन विवाद आखिरकार आज तक सुलझ क्यों नहीं पाया है? इसके पीछे क्या कारण रहे हैं?
दस अध्यायों में विभाजित इस किताब में फिलिस्तीन के इतिहास और दावे के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र की भूमिका पर भी सवाल उठाए गए हैं. लेखक ने लिखा है कि “ आज फिलिस्तीन जिसको संयुक्त राष्ट्र ने मान्यता दी है, वह वेस्ट बैंक और गाजा तक फैला भाग है जिसका अधिकांश भाग इजराइल के कब्जे में है और वेस्ट बैंक में अवैध बस्तियाँ बसाने की प्रक्रिया सतत चालू है.”
भारत इजराइल फिलिस्तीन संघर्ष में दो राज्य की संकल्पना का समर्थन करता रहा है. हालांकि पिछले दशक में भारत के इजरायल के साथ संबंध गहरे हुए हैं. उदारीकरण की नीतियों के आलोक में लेखक ने दोनों देशों के साथ बदलते संबंधों पर प्रकाश डाला है. तथ्यों की रोशनी में लेखक इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष की कहानी तो कहता है, पर विश्लेषण का यहाँ अभाव है. साथ ही अनावश्यक रूप से अध्यायों में कई सब हेडिंग डाले गए हैं. कुछ जगहों पर तथ्यात्मक भूल भी है जिसे अगले संस्करण में सुधारा जा सकता है.
समीक्षक: अरविंद दास
किताब: फिलिस्तीन: जो गायब भी है हाजिर भी
लेखक: अजीजुर रहमान आजमी
प्रकाशक: अंतिका प्रकाशन
कीमत; 295 रुपए
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