Sunday, April 27, 2025

'स्वांग' की राजनीतिक चेतना


'महिंद्रा एक्सीलेंस इन थिएटर अवार्ड्स’ (मेटा) के तहत नाटकों के चयन में विषय-वस्तु को लेकर पर्याप्त विविधता दिखाई देती रही है. पिछले दशक में यह नाट्य महोत्सव रंगकर्मियों के बीच अपना एक मुकाम हासिल किया है. पिछले दिनों दिल्ली में हुए इस नाट्य समारोह में एक तरफ रामायण के मिथक को आधार बना कर ‘दशानन स्वप्नसिद्धी (कन्नड़)’ जैसे नाटक की प्रस्तुति हुई, वहीं ‘एलजीबीटी प्लस’ समुदाय को केंद्र में रख कर ‘बी-लव्ड’ जैसे आधुनिक नाटक भी देखने को मिले. बहरहाल, इस बार चुने गए दस नाटकों में हिंदी और बुंदेलखंडी में प्रस्तुत नाटक ‘स्वांग: जस की तस’ नाटक अपनी प्रस्तुति को लेकर काफी चर्चा में रहा. इसे बेस्ट डायरेक्टर, साउंड-म्यूजिक, अदाकारी समेत कई पुरस्कार मिले.


जहां सरकारी नाट्य उत्सवों में सत्ता और व्यवस्था की आलोचना, टीका-टिप्पणी गायब होती जा रही है, ‘स्वांग: जस की तस’ नाटक में मुखर रूप से समकालीन राजनीति पर चोट उल्लेखनीय है. ऐसा नहीं कि ऐसे में दर्शकों के मनोरंजन में कोई बाधा पहुँची हो.

चर्चित लेखक विजय दान देथा की कहानी ‘ठाकुर का रूठना’ पर आधारित यह नाटक पारंपरिक ‘स्वांग’ शैली के लोक तत्वों का इस्तेमाल कर समकालीन सामाजिक-राजनीतिक अराजक व्यवस्था को सामने लाती है. नाटक के केंद्र में एक ठाकुर है जो बात-बेबात रूठ जाता है और लोगों पर बिना किसी सोच-विचार के अपना निर्णय थोपता रहता है. उसके काम करने की अराजक शैली से सभी परेशान रहते हैं.

ऐसे ही एक दिन ठाकुर गाँव वालों से कहता है कि जितने भी पानी से भरे कुएँ है उसे रेत से भर दे! गाँव वाले परेशान हाल में ठाकुर की माँ (अभिषेक गौतम) के पास फरियाद लेकर पहुँचते हैं. ठाकुर अम्मा की बात से रूठ कर गाँव छोड़ कर चला जाता है, फिर उसे मनाने की कवायद होती है.

अम्मा की भूमिका में गौतम काफी प्रभावी थे, साथ ही उन्हें नमन मिश्रा (ठाकुर) और पूजा केवट (ठकुराइन) का सहयोग मिला. गौतम को सहयोगी अभिनेता के रूप में उत्कृष्ट भूमिका के लिए पुरस्कृत भी किया गया. स्वांग शैली में गीत-संगीत की प्रमुख भूमिका होती है. इस नाटक में मुख्य कलाकार नमन और पूजा दोनों ही अपने गायन से कथा को आगे ले जाने में कुशल दिखे. वाद्य यंत्रों के साथ मंच पर बैठे संगीतकारों की टोली ने उन्हें भरपूर साथ दिया.

स्वांग की लोक-चेतना सामाजिक-राजनीतिक यथार्थ से जुड़ी होती है. इस नाटक में निर्देशक अक्षय सिंह ठाकुर ने हास्य-व्यंग्य और लोक गीत-संगीत का इस्तेमाल करते हुए इसे बखूबी निभाया है. वे कहते हैं कि ‘स्वांग महज एक लोक नाटक शैली नहीं है, बल्कि ऐसा सशक्त समाजिक औजार भी है जो समुदाय के भीतर जागरूकता फैलाने का काम करती है.’

यह बात अन्य लोक नाट्य शैली नौटंकी, तमाशा, बिदेसिया आदि के बारे में भी सच है. बोलचाल की भाषा और सहज संवाद इन लोक नाट्कों की विशेषता रही है जिसे आधुनिक रंगमंच में प्रशिक्षित कलाकार इस्तेमाल कर रहे हैं. आश्चर्य नहीं कि पिछले वर्षों में दिल्ली जैसे महानगर में भी इस तरह के नाटक दर्शकों को अपनी ओर खींचने में सफल रहे हैं

No comments: