Showing posts with label avinash. Show all posts
Showing posts with label avinash. Show all posts

Wednesday, September 18, 2013

हिंदी में समाचार का विमोचन

नई दिल्ली, 11 मई. (जनसत्ता ब्यूरो) वरिष्ठ आलोचक वीरभारत तलवार ने हिंदी पत्रकारिता से साहित्यकारों के जुड़े रहने की परंपरा का जिक्र करते हुए शनिवार को यहाँ कहा कि पत्रकार साहित्यिक हो या गैर साहित्यिक लेकिन उसे प्रोफेशनलहोना चाहिए और मूल्यों की चिंता जरूर की जानी चाहिए. 
 
यह बात उन्होंने यहाँ अरविंद दास की पुस्तक हिंदी में समाचारके लोकार्पण के असर पर अपने अध्यक्षीय संबोधन में कही. तलवार ने इस पुस्तक को हिंदी पत्रकारिता के बदलाव की किताब बताते हुए कहा कि इस इस बदलाव की कहानी इतनी महत्वपूर्ण नहीं होती, अगर पुस्तक में मूल्यों में बदलाव की चिंता न की गई होती. उन्होंने कहा कि इस पुस्तक में भूमंडलीकरण के दौर के अंतरविरोधों का गहराई से विश्लेषण किया गया है. उन्होंने कहा कि पुस्तक में धर्म और बाजार के गठजोड़ पर जो दृष्टि गई है वह पत्रकारिता के इतिहास को समाज परिवर्तन का इतिहास भी बना देती है.
आइ टीवी के अध्यक्ष करन थापर ने इस अवसर पर भाषा के स्वभाव का उल्लेख करते हुए कहा कि अखबार की भाषा औपचारिक भाषा है जबकि आपके ड्राइंग रूम में मौजूद टेलीविजन हर उस चीज से होड़ कर रहा है जो आप कर रहे हैं. टीवी उसी भाषा में होना चाहिए जिसमें आप बात करते हैं. टीवी अगर आम आदमी की भाषा की जगह औपचारिक भाषा में होगा तो वह एकदम नकली हो जाएगा. उन्होंने खबरिया चैनलों पर होने वाली अटकलबाजियों का जिक्र करते हुए शुक्रवार को दो मंत्रियों (पवन कुमार बंसल और अश्विनी कुमार) के इस्तीफों पर चली अटकलबाजी का जिक्र किया, जो, उन्होंने कहा कि पाँच घंटे चली. थापर ने कहा कि अगर इसकी जगह बीबीसी होता तो पांच घंटे अटकलों में नहीं लगाए जाते. वहां विश्वनीयता का ध्यान रखा जाता है.
उन्होंने कहा कि टीवी चैनलों की बहसें भी तमाशा खड़ा करने और झगड़ा करने वाली होती है. टीवी चैनल दरअसल, टीआरपी की दौड़ में लगे हैं. उन्होंने कहा कि बीबीसी स्वायत्त है. वह विज्ञापन के लिए नहीं भागता. थापर ने कहा कि अगर आप न्यूज वैल्यूसे अलग होते हैं तो आपकी गुणवत्ता पर असर पड़ता है और यह पत्रकारिता नहीं है. 
एनडीटीवी इंडिया के कार्यकारी संपादक रवीश कुमार ने अस्सी और नब्बे के दशकी की हिंदी पत्रकारिता का जिक्र करते हुए बताया कि उस दौर में अखबारों की प्रसार संख्या बढ़ रही थी लेकिन इसके बावजूद हम उतने प्रभावी नहीं थे. सत्ता पर (अंग्रेजी अखबारों की तुलना में) असर करने में हम पीछे रह जाते हैं. अस्सी और नब्बे का दशक भी हमारे लिए स्वर्ण युग नहीं था और आज का दौर भी नहीं है. हम हिंदी में पत्रकारीय संवेदन नहीं बल्कि मनोरंजन में तब्दील हो जाते हैं. उन्होंने कहा कि अस्सी के दशक में राजनीतिक पत्रकारिता होती थी और आज हम अगर मनोरंजन या व्यापार की तरफ जाते हैं तो इसे देखा जाना चाहिए.

रवीश ने टीवी में भी भाषा का ध्यान रखे जाने पर सहमति जताते हुए कहा कि भाषा के साथ-साथ हमने उसका भाव भी मारा है. इन चीजों को हम समाप्त करने देंगे तो कैसी स्थिति बनेगी, इस पर सोचना होगा. इस मौके पर जनसत्ता के संपादक ओम थानवी ने भी अपने विचार रखे. पुस्तक के लेखक अरविंद दास ने इस अवसर पर कहा कि भूमंडलीकरण के बाद भारतीय समाज और राजनीति में जो परिवर्तन आए, वे मीडिया और खास तौर पर भाषाई मीडिया में भी आए. इस पुस्तक में उस परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित किया गया है. यह एक तरह से मेरा शोध कार्य है. शुरुआत में कार्यक्रम का संचालन कर रहे मोहल्ला लाइव अविनाश  ने कहा कि इस किताब में पहली चिंता भाषा की है और इसमें बहुसंख्यक जनता को केंद्र में रखा गया है.
 (जनसत्ता से साभार)

Monday, May 13, 2013

हिंदी में समाचार का लोकार्पण

अविनाश,रवीश कुमार,करन थापर,वीर भारत तलवार,ओम थानवी

(ओम थानवी, तलवार और करन थापर बातचीत में मशगूल)

(वक्ताओं को सुनते हुए)

Thursday, May 02, 2013

Hindi Mein Samachar: Launch and Discussion

'Hindi Mein Samachar' from Antika Prakashan is slated to be released, followed by a panel discussion, on Saturday, 11th May at 5:30 at India International Centre, Seminar Hall number 3. Panelists include- Prof. Vir Bharat Talwar (JNU), Karan Thapar (President, ITV), Om Thanvi (Editor, Jansatta), Ravish Kumar  (Executive Editor, NDTV India) and Avinash (Moderator, Mohalla Live).You are cordially invited to celebrate the launch of my book.