Showing posts with label vir bharat talwar. Show all posts
Showing posts with label vir bharat talwar. Show all posts

Saturday, March 18, 2023

पुस्तक समीक्षा: नवजागरण के अंतर्विरोध

 


वरिष्ठ आलोचक वीर भारत तलवार भारतीय नवजागरण के गंभीर अध्येता हैं। नवजागरण को लेकर हिंदी में राम विलास शर्मा सहित अनेक आलोचकों की किताब उपलब्ध है। लेकिन वर्ष 2002 में आई तलवार की किताब रस्साकशी: 19वीं सदी का नवजागरण और पश्चिमोत्तर प्रांतसंदर्भ ग्रंथ के रूप में शोधार्थियों के बीच प्रतिष्ठित है। ऐसा नहीं कि तलवार किताब लिख कर चुप बैठ गए। उन्होंने भारतीय नवजागरण पर अपना शोध और लेखन जारी रखा। रस्साकशीमें उन्होंने हिंदी नवजागरण पर सवाल खड़ा करते हुए लिखा, “भारतीय नवजागरण मुख्यत: धर्म और समाज के सुधार का आंदोलन था जबकि हिंदी नवजागरण का मुख्य लक्ष्य यह कभी नहीं रहा।उनकी स्थापना है कि हिंदी नवजागरण के बजाय इसे हिंदी आंदोलनकहा जाए।

बगावत और वफादारी: नवजागरण के इर्द-गिर्दकिताब इसी की कड़ी है, जिसमें विभिन्न समय पर लिखे लेखों का संकलन है। यह किताब नवजागरण के नायकों के विचारों और उनकी रचनाओं का शोधपरक विश्लेषण करती है। तलवार लिखते हैं कि अपने धर्म की रक्षा और सुधार का उद्देश्य गलत नहीं कहा जा सकता। लेकिन ऐसा करते हुए हम किन विचारों का सहारा लेते हैं, किन उपायों से अपना उद्देश्य हासिल करते हैं?’ इस पर ध्यान देना जरूरी है। इस किताब में वे हिंदू-मुस्लिम नवजागरण की भद्रवर्गीय धाराओं में मौजूद अंतर्विरोधों को रेखांकित करते है।

किताब का शीर्षक सर सैयद अहमद खां के ऊपर लिखे पचास पेज के लंबे लेख से लिया गया है। उन्होंने विभिन्न कोणों से सैयद अहमद के ऊपर इस निबंध में विचार किया है। सन 1857 में हुए आंदोलन (सैयद इसे बगावत कहते हैं) के संदर्भ में तलवार ने नोट किया है कि इसमें सैयद अहमद न सिर्फ एक सरकारी मुलाजिम की हैसियत से शरीक थे, बल्कि वे सबसे पहले भारतीय थे, जिन्होंने उसके बारे में लिखा, उसका विवेचन किया।वे लिखते हैं कि सैयद अंग्रेजी शासन के प्रति वफादार थे और इस विद्रोह के समर्थक नहीं थे, हालांकि उनका एक और पक्ष हिंदुस्तानियों, खास कर मुस्लिम कौम के प्रति उनकी वफादारी का भी है। विद्रोह के बाद अंग्रेजों के मन में मुसलमानों के प्रति जो द्वेष था वे इसे बदलना चाहते थे। उन्होने ईसाई धर्म और इस्लाम का तुलनात्मक अध्ययन किया। अलीगढ़ मोहम्मडन ओरिएंटल कॉलेज (अलीगढ़ विश्वविद्यालय) की स्थापना के संदर्भ में तलवार ने लिखा है कि सैयद के आधुनिक शिक्षा संबंधी प्रयासों में मुसलमानों ने उतना सहयोग नहीं किया, जितना हिंदुओं ने किया।

इस किताब में हिंदू धर्म प्रकाशिका सभाके संस्थापक श्रद्धाराम फिल्लौरी के ऊपर एक महत्वपूर्ण निबंध है। हिंदी में उनके ऊपर बहुत कम लिखा गया है। इसी तरह हिंदी नवजागरण के प्रसंग में खड़ी बोली आंदोलन के अगुआ अयोध्याप्रसाद खत्री और शिवप्रसाद सितारेहिंदपर भी मूल्यांकन है। बिना किसी वाग्जाल में उलझे, सहज और प्रवाहपूर्ण भाषा में तलवार इस किताब में ऐसे सवाल खड़े करते हैं जो नवजागरण संबंधी प्रचलित विचारों को घेरे में लेती है। रामविलास शर्मा की स्थापनाओं के परिप्रेक्ष्य में हिंदी क्षेत्र में सन 1857 के बाद आए बदलावों का एक सम्यक लेखा-जोखा भी इस किताब में है।

 बगावत और वफादारी: नवजागरण के इर्द-गिर्द

वीर भारत तलवार

प्रकाशक | वाणी प्रकाशन

मूल्य: 399 | पृष्ठ: 152

 (आउटलुक हिंदी, 4 अप्रैल 2023)

Wednesday, September 18, 2013

हिंदी में समाचार का विमोचन

नई दिल्ली, 11 मई. (जनसत्ता ब्यूरो) वरिष्ठ आलोचक वीरभारत तलवार ने हिंदी पत्रकारिता से साहित्यकारों के जुड़े रहने की परंपरा का जिक्र करते हुए शनिवार को यहाँ कहा कि पत्रकार साहित्यिक हो या गैर साहित्यिक लेकिन उसे प्रोफेशनलहोना चाहिए और मूल्यों की चिंता जरूर की जानी चाहिए. 
 
यह बात उन्होंने यहाँ अरविंद दास की पुस्तक हिंदी में समाचारके लोकार्पण के असर पर अपने अध्यक्षीय संबोधन में कही. तलवार ने इस पुस्तक को हिंदी पत्रकारिता के बदलाव की किताब बताते हुए कहा कि इस इस बदलाव की कहानी इतनी महत्वपूर्ण नहीं होती, अगर पुस्तक में मूल्यों में बदलाव की चिंता न की गई होती. उन्होंने कहा कि इस पुस्तक में भूमंडलीकरण के दौर के अंतरविरोधों का गहराई से विश्लेषण किया गया है. उन्होंने कहा कि पुस्तक में धर्म और बाजार के गठजोड़ पर जो दृष्टि गई है वह पत्रकारिता के इतिहास को समाज परिवर्तन का इतिहास भी बना देती है.
आइ टीवी के अध्यक्ष करन थापर ने इस अवसर पर भाषा के स्वभाव का उल्लेख करते हुए कहा कि अखबार की भाषा औपचारिक भाषा है जबकि आपके ड्राइंग रूम में मौजूद टेलीविजन हर उस चीज से होड़ कर रहा है जो आप कर रहे हैं. टीवी उसी भाषा में होना चाहिए जिसमें आप बात करते हैं. टीवी अगर आम आदमी की भाषा की जगह औपचारिक भाषा में होगा तो वह एकदम नकली हो जाएगा. उन्होंने खबरिया चैनलों पर होने वाली अटकलबाजियों का जिक्र करते हुए शुक्रवार को दो मंत्रियों (पवन कुमार बंसल और अश्विनी कुमार) के इस्तीफों पर चली अटकलबाजी का जिक्र किया, जो, उन्होंने कहा कि पाँच घंटे चली. थापर ने कहा कि अगर इसकी जगह बीबीसी होता तो पांच घंटे अटकलों में नहीं लगाए जाते. वहां विश्वनीयता का ध्यान रखा जाता है.
उन्होंने कहा कि टीवी चैनलों की बहसें भी तमाशा खड़ा करने और झगड़ा करने वाली होती है. टीवी चैनल दरअसल, टीआरपी की दौड़ में लगे हैं. उन्होंने कहा कि बीबीसी स्वायत्त है. वह विज्ञापन के लिए नहीं भागता. थापर ने कहा कि अगर आप न्यूज वैल्यूसे अलग होते हैं तो आपकी गुणवत्ता पर असर पड़ता है और यह पत्रकारिता नहीं है. 
एनडीटीवी इंडिया के कार्यकारी संपादक रवीश कुमार ने अस्सी और नब्बे के दशकी की हिंदी पत्रकारिता का जिक्र करते हुए बताया कि उस दौर में अखबारों की प्रसार संख्या बढ़ रही थी लेकिन इसके बावजूद हम उतने प्रभावी नहीं थे. सत्ता पर (अंग्रेजी अखबारों की तुलना में) असर करने में हम पीछे रह जाते हैं. अस्सी और नब्बे का दशक भी हमारे लिए स्वर्ण युग नहीं था और आज का दौर भी नहीं है. हम हिंदी में पत्रकारीय संवेदन नहीं बल्कि मनोरंजन में तब्दील हो जाते हैं. उन्होंने कहा कि अस्सी के दशक में राजनीतिक पत्रकारिता होती थी और आज हम अगर मनोरंजन या व्यापार की तरफ जाते हैं तो इसे देखा जाना चाहिए.

रवीश ने टीवी में भी भाषा का ध्यान रखे जाने पर सहमति जताते हुए कहा कि भाषा के साथ-साथ हमने उसका भाव भी मारा है. इन चीजों को हम समाप्त करने देंगे तो कैसी स्थिति बनेगी, इस पर सोचना होगा. इस मौके पर जनसत्ता के संपादक ओम थानवी ने भी अपने विचार रखे. पुस्तक के लेखक अरविंद दास ने इस अवसर पर कहा कि भूमंडलीकरण के बाद भारतीय समाज और राजनीति में जो परिवर्तन आए, वे मीडिया और खास तौर पर भाषाई मीडिया में भी आए. इस पुस्तक में उस परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित किया गया है. यह एक तरह से मेरा शोध कार्य है. शुरुआत में कार्यक्रम का संचालन कर रहे मोहल्ला लाइव अविनाश  ने कहा कि इस किताब में पहली चिंता भाषा की है और इसमें बहुसंख्यक जनता को केंद्र में रखा गया है.
 (जनसत्ता से साभार)

Thursday, May 02, 2013

Hindi Mein Samachar: Launch and Discussion

'Hindi Mein Samachar' from Antika Prakashan is slated to be released, followed by a panel discussion, on Saturday, 11th May at 5:30 at India International Centre, Seminar Hall number 3. Panelists include- Prof. Vir Bharat Talwar (JNU), Karan Thapar (President, ITV), Om Thanvi (Editor, Jansatta), Ravish Kumar  (Executive Editor, NDTV India) and Avinash (Moderator, Mohalla Live).You are cordially invited to celebrate the launch of my book.