Sunday, September 10, 2023

सरहद पार की दो फिल्में

 


पिछले दिनों एक पाकिस्तानी फिल्म जिंदगी तमाशा को लेकर सोशल मीडिया पर टीका-टिप्पणी दिखी. यूँ तो चार साल पहले ही फिल्म समारोहों में इसे दिखाई गई थीलेकिन सेंसरशिप के कारण इसका प्रदर्शन अटक गया. आखिरकार निर्देशक सरमद खूसट ने यूट्यूब पर रिलीज कर दिया है. इस फिल्म के केंद्र एक अधेड़ पुरुष (राहत) हैं. एक दोस्त के बेटे की शादी के अवसर पर वे एक पुराने गाने पर डांस करते हैंजो सोशल मीडिया पर वायरल हो जाती है. घर-परिवार के सदस्यों के आपसी रिश्तेसामाजिक संबंध इससे किस तरह प्रभावित होते हैंइसे निर्देशक ने बेहद सधे ढंग से फिल्म में दिखाया है. साथ ही राहत के बहाने पाकिस्तानी खुफिया समाज की झलकियाँ यहाँ दिखाई देती है. यहाँ निजताइच्छा-आकांक्षास्वतंत्रता का कोई मतलब नहीं है.

इसी तरह जॉयलैंड’ को पिछले साल95वें ऑस्कर पुरस्कार में, ‘बेस्ट इंटरनेशनल फीचर फिल्म’ के लिए शॉर्टलिस्ट किया गया था. यह फिल्म ऑस्कर जीतने में सफल नहीं हुईपर प्रतिष्ठित कान फिल्म समारोह में इसे ‘उन सर्टेन रिगार्ड’ में प्रदर्शित किया गया जहाँ ज्यूरी पुरस्कार मिला था. विभिन्न फिल्म समारोहों में जॉयलैंड’ ने सुर्खियाँ बटोरी लेकिन आम भारतीय दर्शकों के लिए यह फिल्म उपलब्ध नहीं थी. पिछले दिनों अमेजन प्राइम (ओटीटी) पर इसे रिलीज किया गया. युवा निर्देशक सैम सादिक की यह पहली फिल्म हैजहाँ वे संभावनाओं से भरे नज़र आते हैं.

भले ही यह दोनों फिल्में पाकिस्तान में रची-बसी हैलेकिन कहानी भारतीय दर्शकों के लिए जानी-पहचानी है. जिंदगी तमाशा की तरह ही जॉयलेंड के केंद्र में लाहौर में रहने वाला एक परिवार है. इस परिवार का मुखिया एक विधुर है जिसके दो बेटे और बहुएँ हैं. परिवार को एक पोते की लालसा है. बड़ी बहु की तीन बेटियाँ हैं. छोटा बेटा (हैदर) जो बेरोजगार है उसकी नौकरी एक ‘इरॉटिक थिएटर कंपनी’ में लग जाती है. वहाँ वह एक ट्रांसजेंडर डांसर (बीबा) का सहयोगी डांसर होता है. धीरे-धीरे वह उसकी तरफ आकर्षित होता है. घर में छोटे बेटे की बहु (मुमताज) की नौकरी छुड़वा दी जाती है. घुटन और इच्छाओं के दमन से उसका व्यक्तित्व खंडित हो जाता है.

यह फिल्म भी घर-परिवार के इर्द-गिर्द हैपर किरदारों की इच्छा-आकांक्षा से लिपट कर लैंगिक राजनीतिस्वतंत्रता और पहचान का सवाल उभर कर  सामने आता है. चाहे वह घर का मुखिया होउसका बेटा होबहु हो या थिएटर कंपनी की डांसर बीबा. फिल्म में एक संवाद है-मोहब्बत का अंजाम मौत है!’. सामंती परिवेश में प्रेम एक दुरूह व्यापार हैबेहद संवेदनशीलता के साथ निर्देशक ने इसे फिल्म में दिखाया है.

ट्रांसजेंडर की पहचान और अधिकार को लेकर मीडिया में बहस होने लगी है. सिनेमा भी इससे अछूता नहीं है. फिल्म में अलीना खान ने ट्रांसजेंडर डांसरबीबाकी भूमिका विश्वसनीय ढंग से निभाई है. फिल्म में कोई विलेन नहीं है. पितृसत्ता यहाँ प्रतिपक्ष की भूमिका में है. सवाल बहुत सारे हैंजवाब कोई नहीं. यहाँ किसी तरह का उपदेश या प्रवचन नहीं है. कलाकारों का अभिनय बेहद प्रशंसनीय है. ये फिल्में विषय-वस्तु का जितनी कुशलता से निर्वाह करती हैउसी कुशलता से परिवेशभावनाओं और तनाव को भी उकेरती है. 


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