मलयालम सिनेमा के चर्चित फिल्म निर्देशक अडूर गोपालकृष्णन के बाद मोहनलाल को
सिनेमा में योगदान के लिए प्रतिष्ठित दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया
गया है.
अरुंधती राय ने अपनी किताब ‘मदर मेरी कम्स टू मी’ में सत्तर के दशक में तमिल और
मलयालम फिल्मों का जिक्र करते हुए एक जगह लिखा है जहाँ तमिल फिल्में मायावी दुनिया
की तरफ ले जाती थी, वहीं मलयालम फिल्मों का भाव बोध
यथार्थ से जुड़ा होता था.
मोहनलाल की विशेषता है कि वे 'समांतर’ और ‘मुख्यधारा’ के बीच कुशलता से
आवाजाही करते रहे हैं, उनकी स्वीकृति भी दोनों जगह रही है. मोहनलाल की सिनेमाई यात्रा 1980 में आई फिल्म ‘मंजिल विरिंज पूक्कल’ से शुरू हुई जहां
वे विलेन के रूप में नजर आए. जब मैंने मलायलम के चर्चित युवा फिल्मकार जियो बेबी
से बात की तो उनका कहना था, ‘यह मेरे लिए
सम्मान की बात है कि मैं मोहनलाल के अभिनय करियर के दौरान जीवित हूँ. उनके कुछ अभिनय, उनकी हंसी, और सिनेमा से
बाहर की गई कुछ बातें—इन सबने मुझे एक निर्देशक और इंसान के रूप में गहराई से
प्रभावित किया है. मोहनलाल एक
चमत्कार हैं—ऐसा चमत्कार जो कभी-कभी ही होता है.’
पिछले चार दशक से वे मलयालम सिनेमा का अभिन्न हिस्सा रहे हैं और तीन सौ से
ज्यादा फिल्मों में उन्होंने अभिनय किया है. मोहनलाल की तुलना मलयालम फिल्मों के
ही सफल अभिनेता ममूटी से की जा सकती है जिनकी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सफल रही हैं
और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित भी हुई.
राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित फिल्म ‘किरिदम’ (1989) में एक सामान्य जिंदगी जी रहे युवा के किरदार को
उन्होंने निभाया है, जिसकी ख्वाहिश सब इंस्पेक्टर बनने की है पर वह सामाजिक कुचक्र
में फंसता चला जाता है जहाँ हिंसा का साम्राज्य है. मोहनलाल ने यथार्थपरक शैली में
बिना किसी मेलोड्रामा के खूबसूरती से इस ट्रैजिक किरदार को अंगीकार किया है. इसी तरह शाजी करुण की पुरस्कृत फिल्म वानप्रस्थम (1999) में एक तिस्कृत बालक और पिता के रूप में मोहनलाल (कुंजिकुट्टन) ने जिस सहजता और
मार्मिकता से किरदार को निभाया है वह सबके बस की बात नहीं थी. एक कलाकार की
त्रासदी हमें मंथती रहती है.
यह फिल्म कथकली के एक कलाकार के बहाने आजाद भारत में कलाकारों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति, सामाजिक (अ)स्वीकृति, तथाकथित निम्न जाति और उच्च जाति के बीच प्रेम, यथार्थ और मिथक के सवालों को घेरे में लेती है.
सिनेमा के साथ ही उन्होंने रंगमंच पर भी अपनी प्रतिभा के जादू से लोगों को सम्मोहित किया है. वर्ष 2001 में दिल्ली में हुए कर्णभरम (के एन पणिक्कर) नाटक की चर्चा लोग आज भी करते हैं. पिछले दिनों रोमांटिक कॉमेडी ‘हृदयपूरवम’ में वे नज़र आए. जबकि ‘इरुवर’, ‘कालापानी’, दृश्यम जैसी फिल्मों ने उन्हें अखिल भारतीय स्तर पर स्थापित किया. मोहनलाल एक संपूर्ण अभिनेता हैं, जिनके अभिनय के कई रंग रहे हैं. करुण, हास्य, रौद्र सब तरह के भाव इसमें समाहित हैं. मलयालम के अलावा अन्य भारतीय भाषाओं में भी उन्होंने अभिनय किया है, पर यह हिंदी सिनेमा का दुर्भाग्य है कि उनकी प्रतिभा का वह समुचित इस्तेमाल अभी तक नहीं कर पाया है.
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