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Sunday, March 09, 2025

पांच साल बाद फिर पाताल लोक


पांच साल के बाद पाताल लोक वेब सीरीज अमेजन प्राइम पर स्ट्रीम हो रही है. अविनाश अरुण के निर्देशन में इसे सुदीप शर्मा ने रचा है. इस सीरीज में चर्चित असमिया फिल्म निर्देशक जानू बरुआ को देखना सुखद है. हालांकि इस बार भी वेब सीरीज के केंद्र में पुलिस इंस्पेक्टर हाथी राम चौधरी (जयदीप अहलावत) हैं, जो हत्या और नशे के अपराधियों की खोजबीन, धरपकड़ में दिल्ली से उत्तर-पूर्व नागालैंड की यात्रा करते हैं. नागालैंड की राजनीति, विकास और शांति के द्वंद्व को पकड़ने की यह सीरीज कोशिश करता है, लेकिन आखिर एपिसोड तक तक आते-आते सिरा छूटने लगता है. इस लिहाज से यह सीरीज पहले सीजन की तरह बांध कर नहीं रख पाती है. साथ ही नागालैंड समाज को लेकर एक तरह का रूढ़िबद्ध अवधारणा भी यहां दिखाई देता है, खास कर हिंसा को लेकर.

हिंदी फिल्मों, वेब सीरीज में उत्तर-पूर्वी राज्यों की संस्कृति का चित्रण गायब रहा. अगर कोई किरदार नजर आता भी हैतो वह अमूमन स्टीरियोटाइप ही होता है. वर्ष 2020 में निकोलस खारगोंकोर की अखोनी फिल्म इस मामले में अलग थी, जहां हम नस्लवाद जैसे संवेदनशील मुद्दे से रू-ब-रू होते हैं. बहरहाल,  पिछले साल जिस तरह से यथार्थपरक सिनेमा और वेब सीरीज का सूखा रहा, ऐसे में पाताल लोक से साल की शुरुआत में ही दर्शकों को उम्मीद बंधी है.

वेब सीरीज ने निस्संदेह भारतीय सिनेमा उद्योग को कुछ अच्छे कलाकार दिए हैं. जयदीप अहलावत उनमें से एक हैं. उनके अभिनय के रेंज के लिए यह सीरीज देखी जानी चाहिए. ऐसा लगता है कि पहले सीजन में जिस भूमि पे वे खड़े थे, वही से उन्होंने फिर से अपने किरदार को आत्मसात किया है. एक कलाकार के लिए पाँच साल का समय कम नहीं होता. इन वर्षों में उनकी अभिनय प्रतिभा और निखरी है.

ऐसा नहीं है कि पाताल लोक से पहले उन्हें पहचान नहीं मिली थी. वर्ष 2018 में मेघना गुलजार की राजी फिल्म में उन्होंने एक खुफिया अधिकारी की भूमिका निभाई थी, जहां लोगों ने नोटिस किया था, पर वे कहते रहे हैं कि इसके बावजूद  उन्हें काम मिलने में परेशानी हुई. कोरोना के दौरान पाताल लोक सीजन-एक के स्ट्रीम होने के बाद दर्शकों के बीच उनके अभिनय की खूब चर्चा हुई और पहचान मिली. उसके बाद थ्री ऑफ अस’ और महाराज’ जैसी फिल्मों में भी उनके अभिनय की प्रशंसा हुई.

पैंतालीस वर्ष के जयदीप ने थिएटर से जुड़ने के बाद पुणे स्थित फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान से वर्ष 2008 में अभिनय का प्रशिक्षण लिया है. हाथी राम चौधरी का किरदार उन्हीं के लिए लिखा गया  लगता है. हरियाणवी बोली-बानी वाले एक ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ और साफ-शफ्फाक इंसान जो एक पुलिस इंस्पेक्टर की भूमिका में एक साथ कड़क और भावुक है. उसे सामाजिक बीमारियों का इलाज करना है, पर अपने परिवार और बेटे की चिंता भी है. जो सहजता से रो सकता है और एंग्री यंग मैन की तरह अपराधियों से दो-दो हाथ कर सकता है. हाथी राम चौधरी के किरदार में एक साथ विभिन्न भावों को जयदीप अहलावत ने जिस कुशलता निभाया है, उसकी तारीफ की जानी चाहिए.

Friday, April 21, 2023

जुबली वेब सीरीज: बीते दौर की खुशबू और अशोक कुमार

 


हाल ही में  विभिन्न ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हुई वेब सीरीज ने सिने जगत को कुछ बेहतरीन कलाकार दिए हैं. बात पाताल लोक की हो या क्लास की. इसी कड़ी में फिल्म निर्देशक विक्रमादित्य मोटवानी की वेब सीरीज 'जुबली' (अमेजन प्राइम) का नाम जुड़ गया है. इस सीरीज में अपारशक्ति खुरानावामिका गब्बीसिद्धांत गुप्ता जैसे युवा कलाकारों की खूब तारीफ हो रही है.

देश की आजादी-बंटवारे के समय और उसके तुरंत बाद पचास के दशक में बाम्बे की मायानगरी में जो चहल-पहल थी, ईर्ष्या-द्वेष था, सामाजिक-राजनीतिक परिस्थिति थी उसे नॉस्टेलजिया और ड्रामा के सहारे इस सीरीज में बुना गया है. मोटवानी और अतुल सभरवाल के लिखे इस सीरीज में यथार्थ और फैंटेसी के बीच आवाजाही है. सीरीज के केंद्र में फिल्म स्टूडियो और उससे जुड़े कलाकारों की जिंदगी है, राग-रंग है.

110 वर्षों की यात्रा में हिंदी सिनेमा ने कई मुकाम हासिल किए हैं, लेकिन पिछली सदी के 30 और 40 के दशक के चर्चित न्यू थिएटर्स, प्रभात स्टूडियो, बाम्बे स्टूडियो के योगदान की आज कोई चर्चा नहीं होती. जबकि कुंदन लाल सहगल, देविका रानी, अशोक कुमार, दिलीप कुमार जैसे फिल्मी हस्ती इन्हीं स्टूडियो की देन हैं, जिनके बिना हिंदी सिनेमा के इतिहास की कल्पना नहीं की जा सकती.

जुबली में श्रीकांत राय (प्रसेनजीत चटर्जी) क्या बॉम्बे टॉकीज के मालिक, दूरदर्शी फिल्मकार हिमांशु राय हैंक्या उनकी पत्नी सुमित्रा कुमारी (अदिति राव हैदरी) देविका रानी हैं दर्शक उस दौर में मौजूद रहे कलाकारों की छाप सीरीज के किरदारों में ढूंढ़ते हैं. दस एपिसोड के इस सीरीज में मेरी निगाह हालांकि जिस पर टिकी रही, वह है बिनोद उर्फ मदन कुमार बने अपारशक्ति खुराना. मदन कुमार को किस्मत ने सितारा बना दिया है, जिनके नाम पर फिल्में बिकती हैं!

जब भी हिंदी सिनेमा के स्वर्णिम दौर की बात होती है दिलीप कुमार, राजकपूर और देवानंद की तिकड़ी का जिक्र किया जाता है. एक नाम इसमें हमेशा छूट जाता रहा हैअशोक कुमार का. अपारशक्ति खुराना (मदन कुमार/बिनोद) के किरदार में अशोक कुमार की छाप स्पष्ट दिखाई देती है. यह उनकी जीवनी को पढ़ कर स्पष्ट है. बहरहाल, अशोक कुमार (1911-2001) एक रिलक्टेंट एक्टर’ (अनिच्छुक कलाकार) थेजिनकी उपस्थिति हिंदी सिने जगत में करीब सात दशक तक रही और करीब 350 फिल्मों का उनका सफर रहा. कम लोग जानते हैं कि दिलीप कुमार, देवानंदमधुबाला जैसे फिल्मी सितारे, मंटो जैसे लेखक और विमल राय जैसे निर्देशक को फिल्मी दुनिया से जोड़ने में उनकी अहम भूमिका रही. फिल्मों में योगदान के लिए उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

जुबली में हम देखते हैं कि बिनोद एक तकनीक सहायक से सफल स्टार तक की यात्रा करता है, उसी तरह अशोक कुमार की भी कहानी है. वे हिमांशु राय के स्टूडियो (1934) में तकनीक सहायक बन कर आये थे. जब 'बाम्बे टॉकीज' की फिल्म 'जवानी की हवाके अभिनेता नजमुल हसन और देविका रानी के प्रेम संबंधों की भनक हिमांशु राय को लगी, तब उन्होंने हसन की जगह अशोक कुमार को अगली फिल्म जीवन नैया’ (1936) में लेने का निर्णय किया. फिर बॉम्बे टॉकीज की जीवन नैयाअछूत कन्या’,  ‘किस्मत’,  ‘महल जैसी सफल फिल्मों में अशोक कुमार ने  काम किया. और हसन वे एक गुमनाम जिंदगी बसर करते हुए लाहौर में वर्ष 1980 में गुजर गए. बाद में हिमांशु राय की वर्ष 1940 में मौत के बाद देविका रानी (1908-1994) ने रूसी पेंटर स्वेतोस्लाव रोरिक से शादी कर फिल्मी दुनिया से दूर चली गई. वर्ष 1969 में जब दादा साहब फाल्के पुरस्कार की स्थापना की गई तब पहली विजेता देविका रानी ही बनी.

प्रसंगवश जुबली के गीत उड़न खटोले सुनते हुए अछूत कन्या फिल्म के गाने मैं बन की चिड़िया गाने की याद आती है. अभिनय के अतिरिक्त जुबली सीरीज अपने प्रोडक्शन-डिजाइन की गुणवत्ता की वजह से भी याद रखी जाएगी. सीरीज देखते हुए गुजिश्ता दिनों की खुशबू महसूस होती है. साथ ही सिनेमा और व्यवसाय का द्वंद जो बाद के दशक में बॉलीवुड में देखने को मिला उसकी झलक भी मिलती है.

बहरहाल, पिछले वर्ष चर्चित पटकथा लेखक और निर्देशक नवेंदु घोष लिखित जीवनी दादामुनी- द लाइफ एंड टाइम्स ऑफ अशोक कुमार फिर से प्रकाशित हुई. इस किताब में घोष लिखते हैं कि अशोक कुमार हिंदी सिनेमा के पहले सुपर स्टार थे जिन्होंने स्टूडियो से निकल कर बॉलीवुड की सफल यात्रा की थी. अशोक कुमार ने खुद की एक अलहदा अभिनय शैली विकसित की थी और अपने पूरे फिल्मी करियर में वे प्रयोग करने ने नहीं झिझके.

किताब में अशोक कुमार एक जगह कहते हैं कि उनके निर्माण में बाम्बे टॉकीज की महत्वपूर्ण भूमिका रही. वे खास कर हिमांशु राय को क्रेडिट देना नहीं भूलते हैं. हम भले उस दौर के स्टूडियो और कलाकारों के आपसी रिश्तों को भूल गए, पर एक कलाकार ने नहीं भूला. जुबली देखते हुए एक अभिनेता (स्टार) और फिल्म निर्माता (प्रोड्यूसर) के आपसी रिश्ते को भी हम बखूबी देखते-परखते हैं.

 

Monday, December 21, 2020

नए साल में डिजिटल प्लेटफॉर्म से उम्मीदें

 


बॉलीवुड के लिए यह साल चतुर्दिक निराशा का रहा. बॉक्स ऑफिस पर मंदी छाई रही. अनेक कलाकारों की असामयिक मौत का सदमा रहा. ड्रग्स लेने के आरोपों की वजह से कई सितारे सुर्खियों में रहे. चारों तरफ फैली मायूसी के बीच जाहिर है नए साल से काफी उम्मीदें हैं.

केपीएमजी की एक रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा वित्त वर्ष में मीडिया और मनोरंजन उद्योग के कुल राजस्व में करीब बीस प्रतिशत की गिरावट की संभावना है. हालांकि 1.8 ट्रिलियन रुपए के इस उद्योग में प्रिंट, टेलीविजन और फिल्म उद्योग के मुकाबले डिजिटल और ऑन लाइन प्लेटफार्म में वृद्धि देखी गई है. टीकाकरण की वजह से कोरोना महामारी का भय भले ही नए साल में कम होगा, पर लोगों की कुछ आदतें जारी रहेंगी. इनमें डिजिटल मीडिया का उपभोग भी शामिल है.

नए साल में एक बड़ा दर्शक वर्ग सिनेमा हॉल के बरक्स डिजिटल प्लेटफार्म पर रिलीज होने वाली फिल्मों और वेब सीरिज की ओर नजरे टिकाए हुए मिलेंगे. उम्मीद की जानी चाहिए कि विविध विषयों की ओर निर्माता-निर्देशकों का ध्यान जाएगा. हालांकि वेब सीरिज से जुड़े कलाकारों और निर्माताओं-निर्देशकों की चिंता के केंद्र में केंद्र सरकार की वह अधिसूचना रहेगी जिसके तहत ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल और ऑनलाइन कंटेंट प्रोग्राम को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तहत लाया गया है. देश में प्रिंट मीडिया के नियमन के लिए प्रेस आयोग और समाचार चैनलों के लिए न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन और विज्ञापन के नियमन के लिए एडवर्टाइजिंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया है. इसी तरह  फिल्मों के लिए सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन है, पर डिजिटल प्लेटफॉर्म के नियमन के लिए देश में कोई कानून या स्वायत्त संस्था नहीं है.  इस अधिसूचना की जद में नेटफ्लिक्स, हॉटस्टार, अमेजन प्राइम आदि आएँगे. नियमन का स्वरूप क्या होगा इस बारे में अभी स्पष्टता नहीं है.

पिछले दशक में ऑनलाइन मीडिया का अप्रत्याशित विस्तार देखा गया है. यह सच है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर दिखाए गए कुछ वेब सीरीज में जिस तरह हिंसा का चित्रण या गाली गलौज का इस्तेमाल हुआ उसे लेकर नागरिक समाज और सामान्य दर्शकों में रोष है. सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में ऑनलाइन माध्यमों के नियमन की जरूरत पर जोर दिया था. पर रचनात्मक स्वतंत्रता के लिए नियंत्रण या नियमन की कार्रवाई अवरोध ही साबित होंगे. पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से मीडिया और मनोरंजन उद्योग पर हमले हुए हैं इससे बहस-मुबाहिसा और रचनात्मकता का दायरा सिकुड़ा है. ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल और डिजिटल प्लेटफॉर्म से जुड़े लोग इसे सेंसरशिप की ओर बढ़ते कदम के रूप में देख रहे हैं.

पिछले महीने इन सबके बीच वर्ष 2019 में नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई रिची मेहता की वेब सीरीज दिल्ली क्राइम को बेस्ट ड्रामा सीरिज में प्रतिष्ठित एमी पुरस्कार से नवाजा गया. दिल्ली में वर्ष 2012 में चलती बस में हुए सामूहिक बलात्कार की घटना पर यह वेब सीरीज आधारित है. जघन्य अपराध के बाद संवेदनशीलता के साथ पुलिस की कार्रवाई को यह हमारे सामने लाती है. इस अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार से वेब सीरिज निर्माताओं-निर्देशकों की हौसला अफजाई हुई है. उम्मीद है कि नियमन/नियंत्रण की कोई कार्रवाई करने से पहले सरकार डिजिटल प्लेटफार्म की संभावना और सफलता को भी ध्यान में रखेगी.

(प्रभात खबर 20.12.2020) 

Sunday, November 08, 2020

अदाकारों के लिए स्पेस रचता वेब सीरीज

कोविड के दौरान इस साल बड़े परदे पर सन्नाटा रहा और डिजिटल प्लेटफार्म पर वेब सीरीज मनोरंजन का मुख्य जरिया बनकर उभरे हैं. अपने घरों में कैद लोगों ने वेब सीरीज को हाथों हाथ लिया. पिछले दिनों अमेजन प्राइम पर रिलीज हुई ‘मिर्जापुर’ सीजन दो की खूब चर्चा हो रही है. उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में अवस्थित यह सीरीज बाहुबली, अवैध धंधे में लिप्त कारोबारी और राजनेताओं के आपसी गठजोड़ को यर्थाथपरक ढंग से सामने लेकर आती है. आर्थिक पिछड़ेपन और अपराध को अनुराग कश्यप ने भी अपनी चर्चित फिल्म ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ में खूबसूरती से चित्रण किया था. हालांकि वेब सीरीज होने की वजह से मिर्जापुर का कैनवास बड़ा है, जिससे देश-काल और परिवेश उभर कर सामने आया है.

‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ फिल्म की तरह ही मिर्जापुर में हिंसा के चित्रण और गाली-गलौज से भरी भाषा को लेकर दर्शकों ने सोशल मीडिया पर अपना रोष व्यक्त किया है. ‘मिर्जापुर’ सीजन एक (2018) में भी हिंसा का अतिरंजित चित्रण था. सीजन दो के एक एपिसोड में आपसी संवाद में एक पात्र टिप्पणी करते हुए कहती है- ‘तुम्हारी भाषा बहुत गंदी है’. इस तरह की भाषा की शुरुआत नेटफ्लिक्स की पहली वेब सीरीज ‘सेक्रेड गेम्स’ से ही हो गई थी. सिनेमा में हिंसा के चित्रण, पात्रों की ‘अश्लील भाषा’ को लेकर वाद-विवाद पुराना है और पक्ष-विपक्ष में लोग बहस करते रहे हैं. इस बात से इंकार नहीं कि समकालीन समाज और राजनीति के केंद्र में हिंसा का सवाल है, जिससे वेब सीरिज अछूती नहीं है. पर ‘मिर्जापुर’ के कुछ एपिसोड में हिंसा के दृश्य आरोपित हैं. बिना इन दृश्यों के भी इस वेब सीरीज को पूरा किया जा सकता था.

बॉलीवुड में लंबे समय तक कुछ ‘फॉर्मूले’ के तहत ही फिल्में बनती रही हैं. डर इस बात का है कि आने वाले समय में वेब सीरीज कहीं ‘हिंसा-अपराध-चटपटे संवाद’ के ‘फार्मूले’ में फंस कर नहीं रह जाए. ऐसा भी नहीं कि वेब सीरीज में विषयों की विविधता नहीं है. इस साल आए वेब सीरिज ‘बंदिश बैंडिट्स’ में जहाँ संगीत केंद्र में है, वहीं ‘पंचायत’ में ग्रामीण जीवन.

भारत में वेब सीरीज की शुरुआत वर्ष 2014 से कही जाती है. नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई ‘सेक्रेड गेम्स (2018)’ से आम दर्शकों के बीच वेब सीरीज की पहुँच बढ़ी और फिर देखा-देखी विभिन्न प्लेटफॉर्म पर तेजी से फैली. बहरहाल, वेब सीरीज अदाकारों के लिए मुफीद रहे हैं. एक नया स्पेस उन्हें मिला है और आने वाले समय में नए कलाकारों से उम्मीदें भी बंधी है. एक तरफ नसीरुद्दीन शाह, कुलभूषण खरबंदा, रघुवीर यादव, नीना गुप्ता, पंकज त्रिपाठी आदि जैसे मंजे कलाकार वेब सीरीज में इस साल नजर आए, वहीं ‘मिर्जापुर’ में दिव्येंदु शर्मा, श्वेता त्रिपाठी, प्रियांशु पेनयुली, ‘पाताल लोक’ में जयदीप अहलावत, ‘पंचायत’ में जितेंद्र कुमार, ‘शी’ में विजय वर्मा जैसे कलाकारों को आम दर्शकों ने अलग ने नोटिस किया है. जयदीप अहलावत और विजय वर्मा जैसे कलाकार आठ-दस वर्षों से बॉलीवुड में संघर्ष करते रहे हैं.

इन वेब सीरीज की पटकथा में कई ‘सबप्लॉट’ रचे होते हैं. मुख्य अभिनेताओं के अतिरिक्त छोटी भूमिकाओं में आए अदाकारों को भी अपनी प्रतिभा दिखाने का भरपूर मौका मिला है. वेब सीरिज की चर्चा इन अदाकारों के लिए खास तौर पर की जानी चाहिए.

(प्रभात खबर, 8 नवंबर 2020)