Sunday, November 30, 2008

'है अन्याय जिधर उधर शक्ति...'

ब्द निशब्द हो गए थेसिर्फ़ गोलियों और धमाकों की आवाज़ आ रही थी. टेलिवीज़न प्रजेंटर के चेहरे थे लेकिन हमें तलाश उन चेहरों की थी जो मुंबई के ताज, ओबराय और नरीमन हाउस के 'कुंभीपाक' में फँसे थे.
दो महीने पहले दिल्ली में घात लगा कर किए गए धमाकों से हम सहम गए थे, लेकिन मुंबई के ये धमाके हमें हतप्रभ कर गए. टेलिवीज़न स्क्रीन पर आँख टिकाने के बावजूद सब कुछ अविश्वसनीय लगता रहा.
पौराणिक रामायण में जब दशरथ सुत राम समुद्र पर पुल बनाने के समय बार बार विरोध का सामना करते हैं तब वे शंकाकुल हो कह उठते हैं- 'है अन्याय जिधर उधर शक्ति.'
न जाने क्यों ये पंक्तियाँ मेरे मन में मुंबई में हुए हमलों के बाद उमड़-घुमड़ रही है...
क्या चरमपंथ से लड़ना समुद्र मंथन के समान ही नहीं है? चरमपंथ एक फूस के घर में लगी आग नहीं है कि पानी से भरा एक घड़ा लेकर हम दौड़ पड़े.
इस बात को दक्षिण एशिया के सभी देश बेहतर समझते हैं.
संभव है कि इन हमलों में शामिल आतंकवादी पाकिस्तान से आए हों, लेकिन हमें ये चौंकता नहीं है. पहले भी देश में हुए कई हमलों के तार कथित तौर पर पाकिस्तान स्थित चरमपंथी संगठनों से जुड़ते रहे हैं.
लेकिन जब तक दुनिया के सभी देश एकजुट होकर चरमपंथ के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं करते तब तक इस 'ग्लोबल टेररिज़्म' से निजात पाना मुश्किल हैं.
इस हमले में हताहत हुए लोगों के परिवार के प्रति हमारी संवेदना हैं. उन जांबाज सुरक्षाकर्मियों के प्रति हम कृतज्ञ हैं जो दूसरों की हिफ़ाजत करते हुए काल कवलित हुए.
यह सच है कि इस कठिन समय में भी वे राजनीति करने से बाज नहीं आएँगे, राजनीति करना जिनका पेशा है.
लाख बार कहे जाने के बाद भी यही सच है कि चरमपंथियों का कोई धर्म नहीं, कोई देश नहीं होता.
भारत सिर्फ़ उन राजनेताओं का ही नहीं है जो सिर्फ़ कथनी में भरोसा रखते हैं, करनी में नहीं.
दुखद है कि इन हमलों में भी वे वोट बैंक ढूंढ़ रहे हैं. लेकिन ये देश हमारा है. 'मेरी भी आभा में इसमें...'
(तस्वीर साभार- बीबीसी हिंदी डॉट कॉम, ताज होटल मुंबई के बाहर मीडियाकर्मी.)

2 comments:

Rajiv Ranjan said...

बहुत ही अच्छा हैं, परन्तु जीत हमेशा न्याय की ही होती हैं. अन्याय तो क्षणभंगुर हैं. अन्याय शक्तिशाली तो है परन्तु पानी के बुलबुला जैसा.

Manish Tiwari said...

मुश्किल समय में दुविधाएं...