ढलती रात में मेघाच्छन्न आकाश तले, रंग-बिरंगी रौशनियों से नहाए वियना की गलियों में मेरे मन में एक मुग्ध नायिका की छवि उभरी.
बारिश की गंध से भरी सुबह ऐसा लगा कि यह शहर एक नव विवाहिता गृहणी हो. खुशी-खुशी घर के सारे काम निबटा कर जिसे दफ़्तर जाने की जल्दी है, लेकिन काजल जली रात की मधुर स्मृति मन में अब तक रिस रही है और गाहे-बगाहे उसके चेहरे पर स्मित मुस्कुराहट फैल जाती है.
दोपहर भीनी धूप में सड़क पर भटकते हुए मुझे एहसास हुआ कि वह नव विवाहिता एक प्रौढ़ा बन गई जिसके अंदर मोहक स्मृतियों का सुख है और ज़माने का ग़म.
शाम में शहर उस विरहनी नायिका में बदलता दिखा जो बेखुदी में खोई है.
ऐसा लगा जैसे विवियन के शांत और सौम्य चेहरे पर यह शहर अपने सारे भावों सहित रूप बदलता रहता है.
उसकी हँसी में मुझे जाने क्यों विषाद की झलक दिखी. ऐसी झलक अपने प्रेम को खोने के बाद उपजती है. लेकिन उसके चेहेरे पर बदली की तरह आ-जा रही मुस्कुराहट में जीवन को पूरे रंगों में जीने की चाहत थी.
कॉफ़ी पीने के बाद विवियन ने यह कह कर मुझसे विदा ली कि वह अगले दिन शाम को दफ़्तर से आने के बाद फिर मिलेगी और यदि मेरी इच्छा हो तो उसकी दोस्त मुझे दिन में वियना विश्वविद्यालय दिखा सकती है.
विवियन की दोस्त, वेरेना, जर्मन भाषा की छात्र है और दिल्ली में रह चुकी है. हिंदी से उसका लगाव देख मैं चौंक पड़ा.
मैंने देखा मेरे मोबाइल पर एक मैसेज है.
'हेलो जी, मैं विवि की सहेली हूं. अगर आपको वियना मे घूमना पसंद करता तो हमलोग आज दोपहर को मिल सकते. 16.15 शॉटटेनटॉर स्टेशन के पास...'
'शुक्रिया.' मैंने जवाब में लिख भेजा.
जब मैंने शॉटटेनटॉर स्टेशन के लिए ट्यूब ली, तो एक और मैसेज दिखा. अब मैं यू 2 के प्लेटफ़ॉर्म पर हूं...छोटी सूरत, नीली टोपी और काला कोट!'
मैसेज पढ़ कर मैं मुस्कुरा उठा.
सैकड़ों साल (वर्ष 1365 में स्थापित) पुराने वियना विश्वविद्यालय का यह वर्तमान ऐतिहासिक भवन क़रीब सवा सौ साल पुराना है.
छात्रों की गहमागहमी चारों तरफ़ है. मैंने नोट किया कि यूरोप में छात्र लाइब्रेरी में काफ़ी वक्त गुज़ारते हैं. छुट्टी के दिनों में भी लाइब्रेरी में भीड़ दिखती है.
विश्वविद्यालय में घूमते हुए अनायास मुझे अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक की बात याद हो आई कि 'यूरोप में जहाँ सैकड़ों वर्ष पुराने विश्वविद्यालय आज भी दमक रहे हैं, वहीं भारत के विश्वविद्यालय अपने यौवन काल में ही चरमरा गए.'
विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर, शीशे के बने पाए पर उन प्रोफ़ेसरों की पोर्ट्रेट साइज़ की तस्वीरें लगी हुई हैं जिन्हें प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार मिल चुके हैं. उनके साथ एक तस्वीर ऐसी भी है जिसके चेहरे पर प्रश्नवाचक चिह्न लगा है.
वेरेना ने बताया कि यह प्रश्नवाचक चिह्न इंगित करता है कि दूसरे विश्वयुद्द के दौरान नाजियों ने यहूदियों को उनके शोध से रोका और प्रताड़ित किया. उनको देश से बाहर जाना पड़ा और यदि ऐसा नहीं होता तो यह प्रतिमा उनमें से किसी की हो सकती थी.
वेरेना ने बताया कि विश्वविद्यालय के फ़ंड में कटौती की बात को लेकर छात्रों का विरोध चल रहा है.
विश्वविद्यालय में घूमते हुए शाम हो चली. शहर के एक पुराने कॉफ़ी हाउस में विवियन हमारा इंतज़ार कर रही थी.
कॉफ़ी हाउस का हर कोना भरा हुआ था. बीयर, कॉफ़ी और सिगरेट की मिली-जुली गंध, हँसी के कहकहे और शोर.
विवियन और वेरेना ने कॉफ़ी ली और मैंने निर्मल वर्मा की याद में बीयर का एक छोटा मग लिया.
वेरेना ने कहा कि कॉफ़ी के प्यालों के साथ चीयर्स कहना अच्छा शगुन नहीं होता.
'कोई बात नहीं हम पहल करें तो शायद बात बदल जाए.'
चीयर्स!!!
हमारी मेज से सटे एक मेज पर कुछ लड़के-लड़कियाँ ज़ोर-ज़ोर से गा बजा रहे थे.
आपकी अपेक्षा के विपरीत जब बच्चा अतिथि के सामने विचित्र व्यवहार करता है तब जिस तरह का भाव आपके चेहरे पर होता है, कुछ-कुछ ऐसा ही भाव विवियन के चेहरे पर दिखा.
विवियन ने बस इतना कहा, 'वियनावासियों की एक तस्वीर ये भी है.'
'मुझे पसंद है.'
विवियन के चेहरे पर थकान झलक रही थी. उसकी अंगुलियों को मैंने अपने हाथों में ले लिया.
मैंने गौर किया कि उसके चेहरे पर एक हल्की मुस्कुराहट उभर रही है और थकान कम होने का भाव है.
काफ़ी ज़िद के बावजूद विवियन और वेरेना ने मुझे बिल का भुगतान नहीं करने दिया.
मैंने वेरेना से साथ डिनर करने का आग्रह किया लेकिन उसे कहीं जाना था और उसने हमसे विदा ली.
एक चीनी कहावत है कि 'यात्रा के दौरान प्रेम में नहीं पड़ना चाहिए.' इसे निर्मल वर्मा ने अपने यात्रा संस्मरण में कहीं नोट किया है.
लेकिन वियना एक ऐसा शहर है जिसके प्रेम में पड़े बिना आप रह भी नहीं सकते.
दिन में लियोपोल्ड म्यूजियम में घूमते हुए मैंने प्रसिद्ध चित्रकार गुस्ताव क्लिम्ट की कुछ पेंटिंग ख़रीदी थी.
'कार्डस में से जो भी तुम्हे पसंद है चुन लो, मैं उस पर तुम्हारा नाम लिख दूँगा.'
'नहीं, भारत पहुँच कर मुझे ये कार्ड तुम भेजना.' विवियन ने कहा.
(तस्वीर में , वियना विश्वविद्यालय और कॉफ़ी हाउस, जनसत्ता, 'समांतर' स्तंभ में 7 मई 2011 को प्रकाशित)
9 comments:
Dil doondhata hai phir wahi furkhat ke raat din...........gahe bagahe aisa laga, jaise January maas ke kohare ko chirke todi si dhoop khili hai..........mutthi mein band kar rakh loon, phir kal ke liye........shuru ke do para mein adbhud romanticism hai, MAT LIKHO AISA.........TEES UTHATI HAI..
वाह अरविन्द जी, बड़ा ही जीवंत वृतांत सुनाया. आनन्द आ गया.
कब तक हैं आप जर्मनी में?
Cha gaye...
Bachpan me tumne jo padha hai uska usar Shuruaat me kuch jyada ho gaya. Likhte raho sikh jaoge.
'यूरोप में जहाँ सैकड़ों वर्ष पुराने विश्वविद्यालय आज भी दमक रहे हैं, वहीं भारत के विश्वविद्यालय अपने यौवन काल में ही चरमरा गए.' यही है प्रभात पटनायक की THEORY सर जी....??? बिना प्रभात पटनायक का नाम लिए खुद का देखा आपको सच लगना चाहिए ...हमे लगता है कि बिना वजह Name dropping से बचना चाहिए ..... !!!
@ उड़न तश्तरी साहब, शुक्रिया. मैं फिलहाल 10 मई तक हूँ जर्मनी में.
@ मुकेश, पंकज, मित्र मेरे जो कुछ है, जैसा है आपकी नज़र है.
@ उदय, मैं संस्मरण लिखा रहा हूँ..ऐसे में यदि प्रभात पटनायक की कहीं बात याद हो आई तो नेम ड्रापिंग कहाँ है? महीने-डेढ़ महीने में आप उस व्यवस्था से उतने वाकिफ़ नहीं हो सकते..प्रभात पटनायक जैसों ने देश-विदेश के विश्वविद्यालयों को वर्षों देखा-परखा फिर कहा और जब मैंने उसे देखा तो बात याद हो आई...ख़ैर शुक्रिया, कमेंट पढ़ कर अच्छा लगा.
बहुत सुंदर है... ऐसा ही लिखते रहिए... आनंद आया....सचमुच...
Bus ek chota sa line....
bahut aacha tha aapka andaj aur andaj-e-baya aur such puchiae to aapka upama aur upmaye ka estmal aur wo bhi city ke bare me ...... viyana..... i love you
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अरविन्द सर, वियना में होना खुदा की नियामत है.
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